Thursday, 17 September 2015

2 lines shayari

अजीब सी बस्ती में ठिकाना है मेरा
जहाँ लोग मिलते कम झांकते ज़्यादा है
बात मुक्कदर पे आ के रुकी है वर्ना,
कोई कसर तो न छोड़ी थी तुझे चाहने में !

किसी को क्या बताये की कितने मजबूर है हम..
चाहा था सिर्फ एक तुमको और अब तुम से ही दूर है हम।

वहां तक तो साथ चलो जहाँ तक साथ मुमकिन है,
जहाँ हालात बदलेंगे वहां तुम भी बदल जाना.

हम ना बदलेंगे वक्त की रफ़्तार के साथ, हम जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा !!
नजर चाहती है दीदार करना दिल चाहता है प्यार करना

क्या बताऊँ इस दिल का आलम नसीब में लिखा है इंतज़ार करना

अधूरी मोहब्बत मिली तो नींदें भी रूठ गयी…!
गुमनाम ज़िन्दगी थी तो कितने सकून से सोया करते थे…!!

अरे कितना झुठ बोलते हो तुम
खुश हो और कह रहे हो मोहब्बत भी की है

सुनो… तुम ही रख लो अपना बना कर..
औरों ने तो छोड़ दिया तुम्हारा समझकर..!!

कागज़ों पे लिख कर ज़ाया कर दूं मै वो शख़्स नही
वो शायर हुँ जिसे दिलों पे लिखने का हुनर आता है

झूठ बोलने का रियाज़ करता हूँ सुबह और शाम मैं
सच बोलने की अदा ने हमसे कई अजीज़ यार छीन लिये|....

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